कुमारी स्वर्णलता
लोकतंत्र की गुणवत्ता का आकलन नागरिकों की समावेशी भागीदारी से किया जाता है। महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी न केवल समानता का प्रश्न है, बल्कि नीति-निर्माण की प्रभावशीलता और सामाजिक न्याय से भी जुड़ी है। यह लेख बिहार में राजनीतिक निर्णय‑निर्माण की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी का समग्र, विश्लेषणात्मक और नीतिगत अध्ययन प्रस्तुत करता है। अध्ययन स्थानीय स्वशासन संस्थाओं से लेकर राज्य‑स्तरीय राजनीति तक महिलाओं के प्रतिनिधित्व, उनकी वास्तविक निर्णयात्मक भूमिका, तथा सामाजिक‑सांस्कृतिक और संरचनात्मक बाधाओं का परीक्षण करता है। 73वें और 74वें संविधान संशोधनों तथा पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण के परिणामस्वरूप महिलाओं की संख्यात्मक भागीदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, किंतु यह वृद्धि हमेशा गुणात्मक सशक्तिकरण में परिवर्तित नहीं हो पाई है। लेख यह तर्क प्रस्तुत करता है कि पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना, प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व, संसाधनों की कमी और दलगत सीमाएँ महिलाओं की निर्णयात्मक शक्ति को सीमित करती हैं। साथ ही, स्वयं सहायता समूहों, शिक्षा, नेतृत्व प्रशिक्षण और नीतिगत पहलों ने महिलाओं के राजनीतिक आत्मविश्वास और क्षमता को बढ़ाने में सकारात्मक भूमिका निभाई है। अध्ययन का निष्कर्ष है कि प्रतिनिधित्व से आगे बढ़कर एजेंसी, प्रभाव और नेतृत्व को केंद्र में रखने वाली नीतियाँ ही बिहार में समावेशी और उत्तरदायी लोकतंत्र को सुदृढ़ कर सकती हैं।
Pages: 571-576 | 6 Views 4 Downloads