Kumud Kumari
शिक्षा के अवसरों का विस्तार वैश्विक स्तर पर प्राथमिकता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र की "सबके लिए शिक्षा" (EFA) पहल और सतत विकास लक्ष्य (SDG) 4 द्वारा बल दिया गया है। समावेशी शिक्षा का उद्देश्य निष्पक्षता, न्याय और सभी बच्चों के लिए उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना है, विशेष रूप से उन समूहों के लिए जो विकलांगता, जातीयता, लिंग या सामाजिक-आर्थिक कारकों के कारण हाशिए पर हैं। बिहार, जो सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों और शैक्षिक संसाधनों की कमी से जूझ रहा है, में समावेशी शिक्षा को लागू करने में शिक्षकों की तैयारी और दृष्टिकोण केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। यह शोध पत्र बिहार के संदर्भ में शिक्षक प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, जो समावेशी कक्षाओं को प्रभावी बनाने के लिए अनिवार्य है। यह शिक्षक की तैयारी के प्रमुख घटकों, जैसे विषयगत ज्ञान, शैक्षणिक कौशल, बाल विकास की समझ, और विविध शिक्षार्थियों की जरूरतों के प्रति संवेदनशीलता का विश्लेषण करता है। साथ ही, यह भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और विकलांग व्यक्तियों के अधिकार (RPWD) अधिनियम 2016 की सिफारिशों को रेखांकित करता है, जो समावेशी शिक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण हैं। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में, सलामांका वक्तव्य (1994) के प्रभाव को भी जांचा गया है, जो समावेशी शिक्षा नीतियों को आकार देने में मील का पत्थर रहा है। यह अध्ययन बिहार में समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधारों और शिक्षक प्रशिक्षण को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर देता है।
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