धीरज प्रताप मित्र, विशाल प्रताप मित्र
सभ्यता का विकास मनुष्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया। यद्यपि कि यह विकास केवल सामाजिक, सांस्कृतिक अथवा भौतिक लाभों तक सीमित नहीं रहा बल्कि इसके साथ कई गहरी भावनात्मक, मानसिक एवं पारिस्थितिकीय कीमतें भी जुड़ी हैं। प्रस्तुत लेख सभ्यता के लाभ तथा उसकी कीमत पर समाजशास्त्रीय-साहित्यिक दृष्टिकोण से विचार करता है। नॉर्बर्ट एलियास तथा फ्रायड के सिद्धांतों के माध्यम से सभ्यता के विकास के साथ जुड़े भावनात्मक संकटों, असंतोषों का विश्लेषण इसमें किया गया है। सभ्यता ने जहां समाज को अनुशासन, उन्नति एवं व्यवस्था प्रदान किया वहीं उसने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, भावनात्मक शांति के साथ सांस्कृतिक विविधता को भी दबाया। इस सबके अतिरिक्त यह लेख सामाजिक विषमताओं, जातिवाद, वर्गभेद, पितृसत्तात्मक संरचनाओं के स्थायिकरण के संदर्भ में सभ्यता की आलोचना करता है। वैश्वीकरण तथा पूंजीवादी विकास ने संस्कृति, परंपरा एवं प्रकृति के साथ संबधों को भी तोड़ा है, जिसका परिणाम आदिवासी समुदायों की हानि के साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र की शिथिलता के रूप में सामने आया है। इसके अलावा, वैकल्पिक सभ्यताओं-सामाजिक आंदोलनों की ओर उन्मुख होने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है। इस लेख का उद्देश्य सभ्यता के मूल्य और उसकी छिपी कीमत को समझना तथा एक ऐसी सभ्यता की परिकल्पना करना है जो मनुष्य, प्रकृति एवं संस्कृति के समग्र संतुलन को बनाए रखे।
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