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International Journal of Humanities and Education Research

Vol. 6, Issue 2, Part D (2024)

औपन्यासिक परम्परा और जैनेन्द्र के उपन्यास

Author(s):

डाॅ. अरविन्द कुमार सिंह और धर्मेन्द्र निषाद

Abstract:

उपन्यास हिन्दी साहित्य की आधुनिक विधा है। इस विधा का हिन्दी साहित्य में प्रादुर्भाव अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव स्वरूप हुआ। माना जाता है कि इस विधा का उद्भव और विकास पहले यूरोप में हुआ। बाद में बांग्ला के माध्यम से यह विधा हिन्दी साहित्य में आयी। हिन्दी के प्रारम्भिक उपन्यास इन भाषाओं के अनुवाद मात्र हैं। लेकिन इसका यह अर्थ बिलकुल भी नहीं हैं कि इससे पहले भारत में उपन्यास जैसी विधा थी ही नहीं। ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि में अनेक नीति कथाएँ तथा आख्यान हैं जिनमें उपन्यास विधा के अनेक तत्व मिलते हैं, लेकिन कुछ तत्वों के अभाव के कारण हम उनको उपन्यास की संज्ञा नहीं दे सके। हिन्दी उपन्यास की परंपरा इतनी गहरी और विभिन्न रंगो से भरपूर है कि औपन्यासिक परिदृश्य को समझने के लिए हिन्दी उपन्यास की विकास यात्रा की संक्षिप्त चर्चा करना अनिवार्य है हिन्दी उपन्यास की विकास-यात्रा के तीन चरण हैं- 1. प्रेमचंद पूर्व युग अर्थात भारतेन्दु युग 2. प्रेमचंद युग 3. प्रेमचन्दोत्तर युग।

Pages: 280-283  |  54 Views  22 Downloads


International Journal of Humanities and Education Research
How to cite this article:
डाॅ. अरविन्द कुमार सिंह और धर्मेन्द्र निषाद. औपन्यासिक परम्परा और जैनेन्द्र के उपन्यास. Int. J. Humanit. Educ. Res. 2024;6(2):280-283. DOI: 10.33545/26649799.2024.v6.i2d.123
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